मृगतृष्णा सा मोह-6
यह मृगतृष्णा सा मोह हुआ,
मन का मन से बिछोह हुआ;
तो आज तक माना था अपना,
अब गैरों सा क्यूं व्यवहार हुआ;
शब्दों के तीक्ष्ण बाण का चलना,
अति लगाव घाव सा फिर हुआ;
न उम्र की सीमा से कभी जुड़ा,
न जन्म का भी नया नाता हुआ;
अंतर्मन गहराई से ऐसा है बंधा,
भूलाने पर भुलाने को नहीं हुआ;
नारी मन में ममता का वास सदा,
बिसराऊं कैसे प्रीत का अहसास हुआ।
-सीमा गुप्ता