मूर्ति और मैं
मित्रो नमस्कार ……………
मूर्ति खंडित होती है ,,,,,,,,,,,,
कभी देखा है ,,,,पत्थर को रोते हुए ….
वह संज्ञा शुन्य ,,,जड़वत,,,पत्थर
उसे कुछ पता नहीं चलता …………
वह जानना भी नहीं चाहता ,,,शायद इसी लिए …
किन्तु ,,,बनाने और पूजा करने वालो का हाल ?
उनके लिए वह सिर्फ मूर्ति नहीं ,,,,,,,,,,,
कुछ और है ,,,,,,,,,,,,उनकी चेतना समाहित थी उसमें ..
उनके प्राण ,,जीवन ,और जाने क्या .क्या ..
चेतना के खंडित होने की पीड़ा ,,,
तो आप समझ सकते है ,,,,,,,,,,
कोई पत्थर नहीं ,,शायद कभी नहीं ………