मूर्तिकार
मूर्तिकार।
बनाता हूँ मैं,
भगवान की मूर्तियां
सुन्दर से सुन्दर बने,
कोशिश यही होती है मेरी।
बड़े ध्यान से,
बड़े चाव से,
करता हूँ पूरी।
मैं, हरेक मूरत को।
मुझे ये लालच नही
खूब मुझे धन मिले,
ये करता हूँ मैं
उसे पाने की धुन में ।
शायद कभी
उसकी कृपा दृष्टि
हो मुझ पर।
शायद इसी बहाने,
तर जाऊ मैं भी
भव सागर पार।
क्योकि मैं हूँ
एक मूर्तिकार।
कोई लिखता है,
भजन कहानियाँ
कोई लिखता है
प्रेम दिवानियाँ ।
मैं पत्थर पर लिखता हूँ
उसकी मेहरबानियाँ ।
मुकेश गोयल ‘किलोईया’