मूर्ख दिवस
मूर्ख दिवस
क्यों बनाते हो हमें मूर्ख आज बस एक दिन,
हम तो पीढ़ियों से अनवरत बना रहे हैं मूर्ख स्वयं को…
और समझकर खुद को समझदार पालते हैं वहम को.…
हमें तब भी पता था कि विभीषण राम के लिए कितना अहम रहा…
पर हमें अपने राष्ट्र के स्वाभिमान राम और सीता के सतीत्व से अधिक,
विभीषण के भ्रातृ द्रोही होने का ज्यादा गम रहा…
कुलवधू द्रोपदी की मर्यादा तार-तार होना और लाक्षागृह का षड्यंत्र मात्र प्रतिशोध लगता है…
लेकिन कर्ण द्रोणाचार्य के वध के तरीकों से आंखों की कोर गीली हो जाती है रोष जगता है…
अबला के निर्मम बलात्कार और आतंकियों द्वारा निरपराधों की हत्या कहां रोक पाते हैं…
लेकिन आतंकियों और अपराधियों के मानवाधिकारों के लिए कोर्ट तक जाते हैं…
गाय से ज्यादा शेरों, मछली से अधिक मगरमच्छों और आदमी से ज्यादा सांपों के जीवन का ख्याल रखते हैं…
आदमी का क्या है कभी नक्सली, जिहादी, आतंकी, खनन और रेत माफियाओं के हाथों रोज मरते हैं…
भूमंडल की ऑक्सीजन को खत्म कर अंतरिक्ष में ग्रहों पर ऑक्सीजन तलाश रहे हैं…
नदियों में जहर डाल रहे है और समुद्र के खारे पानी को तरास रहे हैं…
जो जितना ज्यादा पढ़ लेता है उसकी मूर्खता में उतना ही ज्यादा निखार आजाता है…
जिहाद, अपराधी मानवाधिकार और वैमनस्य की बात करने का हुनर पढ़े लिखों पर ही तो आता है…
जो बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल नहीं कर पाए वही तो जमा पा रहे हैं रुतबा विदेशों में…
और रख कर पाए हैं देश को सुरक्षित पड़ोसी नाग और घर के सपोलों से…
इसलिए हमें मत बनाओ मूर्ख बस एक दिन के लिए…
हम सदियों से हैं मूर्ख, खुद बुनते हैं खुद के कफन के लिए…
भारतेंद्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान