मूक सड़के
यह मूक सड़कें
कितना बोझ ढोंयेगी
पड़ गए इसकी काया में
अनगिनत छाले
फिर भी
कभी वाहनों का बोझ
सभी जनमानस का शोर
सड़क के कंधे थक गए हैं
ढोते-ढोते सब का बोझ
रात को भी ना सो पाती हैं
सुनते सुनते सबका शोर
कब मिलेगा इसको आराम
जब होगी आबादी कम
वाहनों का भी होगा आवागमन कम
घावों को इसके भरने दो
कुछ आराम तो करने दो
मधु शाह