मुक़द्दर
तुम अगर यु ही साथ रहोगी,
खुदा कसम हम ही मुकद्दर बनाने लगेंगे,
तुमको भूलने में जमाने लगेंगे,
फिर भी हम तुमको याद आने लगेंगे,
जो आज दबाते है बात को ,
कल वही बात चलाने लगेंगे,
हम जानते है समझते है,
फिर भी लोग समझाने लगेंगे,
सबको मालूम होगा, जिन्दा है,
फिर भी मैय्यत मेरी उठाने लगेंगे,
कितने हम दर्द है देखना,
जालिम भी हमदर्दी दिखाने लगेंगे,
उन्होंने पूछा है महोब्बत कितनी है ,
नापने में न जाने कितने पैमाने लगेंगे,
देखो ! यू न रूठा करो,
तुमको मालूम है मनाने में ज़माने लगेंगे,
दिल टुटा है मेरा और रात बहुत लम्बी है,
अभी ख्वाब भी बहुत सताने लगेंगे,
उनकी अदाओ के ज़ुल्म तो देखना,
हर आह! पे नश्तर चलाने लगेंगे,
इश्क़ की मय्यत पे तो कोई नहीं आया,
हुस्न की बिदाई में सब जाने लगेंगें,
“साहिब” तुम चले आओ,
देखना हम फिर मुस्कुराने लगेंगे,