“मुहावरों पर कविता भाग-३”
वह डेढ़ पसली का लड़का अपने मोहल्ले में गजब का उधम मचाता था,
उसके साथी एक ही थैली के चट्टे बट्टे थे उनके संग वह भी मिल जाता था।
वह लड़का और 9 दिन चले अढ़ाई कोस वाला काम किया करता था,
कहने वाले कहते रहते उसको, मगर वह किसी का मान ना रखता था।
लोग समझाते रहे उसे घंटों तक और कांव-कांव करते रह गए,
मगर हमने तो उसे एक आंख से देख अपना ही बना लिया।
कभी-कभी अपने घर के बड़ों के मन का कांटा निकाला करो,
उनके अनुभव से कुछ सीख लेना यूं जख्म ना कुदेरा करो।
एक छोटे से काम के लिए मेरे गर्दन पर सवार क्यों हो रहे हो,
होगा तुम्हारा भी पूरा काम इस तरह से बेकरार क्यों हो रहे हो।
होगी उनकी भी मजबूरियां मगर, वह तो ऊपरी आमदनी मांगते हैं,
हमारी जिंदगी के सभी दुखों को, प्रभु एक ही लकड़ी से हांकते हैं
©अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
अनूपपुर मध्यप्रदेश