मुहावरा -आगे कुंआ पीछे खाई-
मुहावरा -आगे कुंआ पीछे खाई-
हासिम कि दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी उसके पिता लतीफ उंसे कपड़े कि फेरी के लिए कलकत्ता ले गए उसका मन वहां नही लगा लगता भी कैसे उसे गांव में प्रधान का ठाट बाट बहुत प्रभावित किया था वह और उसकी आदतें भी बिगड़ चुकी थी जब तक प्रधान जी को यकीन नही हो गया कि हासिम अपने पैर पर अब पुनः खड़ा होकर उन्हें चूनौती देने कि स्थिति में कभी नही होगा तब तक उसे अपने पैसे से उन आदतों का शिकार बनाते रहे जो भविष्य में उसके लिए समस्या बन कर न खड़ी हो जाये ।
हासिम मुसलमान होने के बावजूद शराब पीने का आदि बन चुका था गांजा भांग अफीम जो भी नशे के लिए गांव के परिवेश में उपलब्ध था सब उसके लिए अनिवार्य था कुदरत की दी हुई सौगात जन्मजात उसने सोहबत के चक्कर मे मटियामेट कर दिया था ।
अब उसके सामने #आगे कुआ और पीछे खाई #
वह कही का नही रहा उसके अब्बू जान कि सभी ख्वाहिशे दम तोड़ चुकी थी वह बिगड़ा हुआ नौजवान था ।
जब उसने मेट्रिक कि परीक्षा पूरे इलाके में सबसे अधिक नम्बरों से उत्तीर्ण किया था तब हर घर मे माँ बाप अपनी औलादों से यही कहते हासिम को देखो फेरी वाले का लड़का इंजीनियर डॉक्टर कलक्टर बन जायेगा और तुम लोग घास छीलते रह जाओगे।
अब हर घर मे उल्टा लड़के मां बाप से कहते कि देख लिया हासिम को जिसकी बड़ी तारीफ करते थे कहीं का नही रहा हासिम इन सब बातों से बेखबर अपनी ऐयाशियों के जुगाड़ में ही लगा रहता ।
समय बीतता गया हासिम कि बर्बादी का आलम थमने का नाम ही नही ले रहा था कुछ लोग कहते कि प्रधान जी ने गांव के अच्छे खासे नौजवान को जो भविष्य में गांव जवार का नाम रौशन करता उंसे बर्बाद कर दिया तो हासिम के अब्बा यही कहते हासिम तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने गयी थी तुम सही गलत में फर्क नही कर सके और बर्वादी के कगार पर पहुँच गए इसमें प्रधान का क्या दोष जिस इंसान को भले बुरे का भान नही रहता वह तुम्हारी तरह से ही अंधा हो जाता है अब तुम्हारे लिए जिंदगी ही बोझ बन चुकी है तो बाकी क्या कर पाओगे ।
हासिम के पास कोई रास्ता नजर नही आ रहा था उसके सामने जिंदगी का अंधेर भयंकर विकराल डरावना बन कर खड़ी थी ।
उंसे कोई रास्ता नही सूझ रहा था #आगे कुंए और पीछे खाई #कि स्थिति से कैसे उबर सके जब भी दिमाग मे यह बात आती फिर किसी न किसी नशे में वह धुत पड़ा रहता जिस लड़के पर गांव वालों को कभी फक्र हुआ करता अब उसे देख या उसकी चर्चा सुनते ही नाक भौं सिकोड़ने लगते।
हासिम के अब्बू ने बेटे को हालात के भरोसे छोड़ दिया और खुद कलकत्ता अपने फेरी के रोजगार के लिए चला गया जब तक था बाबा बेटे में रोज किसी न किसी बात को लेकर तू तू मैं मैं होती रहती ।
हासिम के अब्बू लतीफ रोज रोज कि कीच कीच से आजिज आ चुके थे पांच वक्त के नमाज में ख़ुदा से सिर्फ हासिम की सलामती कि दुआ मांगते रहते गांव वाले भी हासिम की रोज रोज कि शरारतों से तंग आ चुके थे ।
किसी तरह दिन बीत रहे थे इसी बीच प्रधानी का चुनाव आ गया और गांव में चुनांव कि सरगर्मियां तेज हो गई गांव के प्रधान ने अपने जीत का अच्छा समीकरण बना रखा था जिसमे मुसलमानों कि भूमिका भागीदारी अहम थी ।
हासिम अपनी धुन में मस्त इधर उधर घूमता रहता उंसे प्रधानी के चुनांव से क्या लेना देना गांव के प्रधानी के उम्मीदवार जयकरन सिंह ने हासिम को ताना मारते हुए कहा प्रधानी के एलेक्सने लड़ जात त भला हासिम चुप चाप सुनकर निकल गया प्रधानी के चुनांव के पर्चा दाखिला के दिन ब्लाक पहुंचा जयकरन सिंह भी पहुंचे थे हासिम को देखते ही वह समझ गए यह भी प्रधानी चुनांव का पर्चा जरूर भरेगा जितना तो दूर की बात यह पुराने प्रधान के लिए सार दर्द जरूर बन जायेगा जयकरन सिंह ने हासिम को दो समर्थक एव जमानत की राशि दे दी हासिम ने प्रधानी के चुनांव का पर्चा भर दिया और प्रधानी का प्रत्याशी बन गया ।
पूरे गांव में चर्चा आम हो गई कि हासिम गाँव के प्रधानी का चुनाव लड़ रहा है सभी ताना मारते कि कलक्टर बनत बनत अब गांव के प्रधानी बने चला मारेस नरक मचा रखा है पुराने प्राधन जो अपनी जीत निश्चित मान कर चल रहे थे उन्हें बहुत साफ समझ मे आ गया कि हासिम कम से कम पच्चीस पचास वोट मुस्लिम समाज का काट देगा और उनकी हार निश्चित।
जयकरन सिंह की जीत पक्की लेकिन कर भी क्या सकते थे उन्होंने हासिम के अब्बू लतीफ को बुलाया और समझाने की बहुत कोशिश किया लतीफ ने हासिम को बहुत समझाने की कोशिश किया मगर हासिम ने कहा अब्बू हमे इस रास्ते पर लाने वाला प्राधन ही है आप इसकी तरफ दारी कर रहे है जिसने आपकी उम्मीदों पर मठ्ठा डाल दिया आप जो चाहे कर ले किंतु मैं चुनांव अवश्य लड़ूंगा लतीफ पुनः कलकत्ता लौट गए ।
लेकिन मुसलमान परिवारो के युवक हासिम के पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए पुराने प्राधन को हार का खतरा हासिम साफ दिख रहा था उन्होंने दिमाग से काम लिया और हासिम को उसके नौजवान साथियों के साथ बुलाया हासिम की सेना पर
प्राधन जी के साथ समझौता करने के लिए एकत्र हुए हासिम ने कहा प्रधान जी हम एक शर्त में आपके पक्ष आ सकता हूँ आप नगद एक लाख रुपये दे वर्ना आपको बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि मेरे साथ आप भी चुनांव हारने वाले है।
प्राधन जी ने बहुत मान मनाऊइल किया मामला पचास हज़ार पर समझौता के करीब पहुंचा हासिम बोला प्राधन जी पांच वर्ष में आप कम से कम पचास लाख रुपया कमाते है और प्रधानी के इलेक्शन में दस बारह लाख रुपया खर्च होते है पचास हज़ार खैरात दे रहे है चलो कोई बात नही पच्चीस हजार हमारी टीम के नौवजवानो को दे और पच्चीस हजार मुझे हासिम और उसके साथी पुराने प्राधन से पैसा लेकर उनके डमी कंडीडेट बन कर प्रचार शुरू कर दिया प्रधानी के वोट पड़े और पुराने प्रधान पुनः चुनांव जीत गए जयकरन सिंह चुनांव हार गए ।
हासिम को दल दल में प्रधान के द्वारा दिया गया था और उसे रास्ता भी प्रधान ने ही दिखा दिया हासिम को अपनी जिंदगी के
# आगे कुँवा पीछे खाई# से
बच निकलने का आसमानी रास्ता दिख गया और वह दौड़ पड़ा।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।