मुहब्बत में
वफ़ाएँ ढूंढते हैं लोग जाने क्यों मुहब्बत में
किसी को भी मिले हैं क्या, कभी भी फूल उल्फत में
कहाँ चिंता वतन की अब, यहाँ पर लोग करते हैं
तिजारत से कहीं ज्यादा, कमाते धन सियासत में
कहाँ अब दोस्त मिलते हैं, सुदामा कृष्ण के जैसे
न लक्ष्मण से रहे भाई, किसी की आज किस्मत में
अगर बेचैन हो दिल तो, सुनाएँ गम किसे जाकर
नहीं कम आजकल होते, पड़ोसी भी अदावत में
कहीं बिकती गवाही है, कहीं टोटा सबूतों का
कहाँ अब न्याय मिलता है, गरीबों को अदालत में
कहीं पर खाट चर्चा में, कहीं हैं खाट पर चर्चे
रहे माहौल कैसा भी, लगे हैं लोग दावत में
बड़े वादे बड़ी बातें, शुरूआतें बड़ी अच्छी
मिले बस अंत में धोखे, न जाने क्यों शराफत में