मुहब्बत दीया नहीं मशाल है ….
मुहब्बत दीया नहीं मशाल है यारो
यहाँ इक इक ज़रर्रा कमाल है यारो
मंज़िलों का फ़ैसला लेते हैं कैसे
परिंदों से इक मिरा सवाल है यारो
क़लम अपने आप तो चलता नहीं कभी
अहद-ए-इंक़लाब में उबाल है यारो
सिखाया है तज़ुर्बे ने के बस मां ही
ज़माने में प्यार की मिसाल है यारो
चलो कुछ दिन और अपनी दौलत बचा रखो
अभी तो बाज़ार में उछाल है यारो
इक हसरत-ए-दीद बाक़ी है आँखों में
दर्द से हो चला दिल निढाल है यारो
गये सब रहजन गुज़र के इन राहों से
तन्हाइयों का दौर फिर बहाल है यारो
–सुरेश सांगवान ‘सरु’