मुहब्बत की बारिश
जिस बारिश के लिये हम कब से तरस रहे हैं ।
मुहब्बत के वो बादल हर दिल पर बरस रहे हैं ।
घूम फिर कर हमारी नजरें जिन पर अटक रहीं हैं ।
किसी ना किसी भंवरे संग वो भी मटक रहीं हैं ।
कई भीगे इस बारिश में तो कई इसमें डूबे हैं ।
हम तो कब से प्यासे इस वीराने में सूखे हैं ।
शायराना अंदाज में जब किसी को इकरार ऐ इश्क सुनाया ।
जबाब मिला बस यही और कितनों पर ये पैंतरा आजमाया ।
कोई तो होगी क्योंकि है यह रब की कारीगरी ।
मिलेगी हमको हमराही जो करेगी हमारी बराबरी ।
हमारे इस वीराने में जब कोई पतझड़ बनकर आयेगी ।
मौसम सारा झूमेगा दिल के हर कोने में हरियाली छायेगी ।
सारी हया की रस्में कसमें तोड़ आयेगी ।
हमारी खातिर वो दुनिया छोड़ आयेगी ।
हमसे मिलने के लिये वो हर दीवारें फाड़ आयेगी ।
कसम से
बारिश तो क्या रेगिस्तान में भी बाढ़ आयेगी ।