** मुहब्बत का सिम्बल ताज **
एक ताज है खड़ा आज
मुहब्बत का सिम्बल बन
न जाने कितनी जाने गयी
इसे बनाने की शहादत में
आज हमको आदत हो गयी
इसे प्यार का घर बताने की
बनता है मकबरा किसी के
मरने के बाद उसकी याद में
न जाने कितने जिन्दा दफ़न
हो गये मृतक-घर सजाने में
एक बादशाह ने कितनी जाने
गंवाई मुर्दा मुहब्बत सजाने में
हम आज देते हैं बानगी उसी
बेरहम मकबरे की मौजूदगी
नहीं हो सकता वो सिम्बल
मुहब्बत का आज ताज
उसे तो गिर जाना चाहिए
आज के आज ।।
?मधुप बैरागी