मुहब्बत का सलीका
मुहब्बतों का सलीका सीखा दिया मैंने,
हिज्र-ए-इश्क़ में रह के दिखा दिया मैंने।
गुजरी थी जो रात तेरे साथ,उस
की खुश्बू को खुद में बसा दिया मैने।
खलिश – ए – खिलवत में भी तेरी
खुद को खुश रह के दिखा दिया मैंने।।
रवायत – ए – वफ़ा ना निभायी तूने कभी
फिर भी एक- तरफा इश्क़ निभा दिया मैंने।।
कसक – ए – मुहब्बत में संध्या फिर
एक मुहब्बत का दिया जला दिया मैंने।।
✍* संध्या चतुर्वेदी *