मुहब्बत का दिल पर मुक़म्मल असर है
ग़ज़ल
काफ़िया-अर
रदीफ़- है
मुहब्बत का’ दिल पर मुक़म्मल असर है।
जिधर देखता हूँ उधर हमसफ़र है।
उसी रास्ते पर बहकते कदम अब
जो’ जाता तुम्हारे महल को डगर है।
परेशान मैं आज ये सोचकर हूँ
की वस में नहीं अब हमारा ज़िगर है।
तेरे रूप के नूर को देखकर अब
नही आज हटती हमारी नज़र है।
हमें रात दिन याद तेरी सताए
मगर आज तुझको न मेरी फ़िकर है।
रहूँ आजकल अब ख़यालो में डूबा
तुम्हारी नज़र का असर कारग़र है।
जवानी नही फिर मिलेगी दुबारा
अजी प्यार करलो समय मुख़्तसर है।
फँसा इश्क़ के जाल में आज “अभिनव”
नशीली नज़र ने जो’ ढाया कहर है।
अभिनव मिश्र अदम्य