मुहब्बत का गम तुम्हें भी छुपाना होगा
मुहब्बत का गम तुम्हें भी छुपाना होगा
शायद तुम्हे जीते जी ही मर जाना होगा
इस मतलबी दुनिया में नहीं कोई अपना
यह जानते भी तुम्हें रिश्ता निभाना होगा
ताउम्र तुम्हे तन्हा ही रहना होगा जहां में
फिर भी अजनबी से दिल लगाना होगा
शिकारी फंसा लेगा तुम्हें अपने जाल में
आजादी के लिए खुद को जगाना होगा
जिस्म के लुटेरे तुम्हारे करीब भी आएंगे
इनके सीने पर तुम्हें खंजर चलाना होगा
———-रवि सिंह भारती———-
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