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13 May 2024 · 1 min read

मुहब्बत-एक नज़्म

‘ग़ालिब’का हो सलीक़ा या ‘जोश’की रवानी
‘मजरूह’ का तसव्वुर या ‘फ़ैज़’ की कहानी

सदियाँ सिमट गई हों जैसे हरेक पल में
रूहानियत है ज़िन्दा वो ‘मीर’ की ग़ज़ल में

बातें ‘शक़ील’ की भी पैग़ाम भी ‘नज़ीरी’
तुम से ही ए मुहब्बत ‘शाहिद’ में है फ़कीरी

तुम रूह हो अदब की जीने की तुम अदा हो
दुनिया में ए मुहब्बत तुम भी कोई ख़ुदा हो

अपना असर दिखा के ऐसी हवा चला दो
हर आदमी में जलती ये नफ़रतें बुझा दो

Language: Hindi
103 Views

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