मुस्कुराहट में छिपाना चाहती हूँ
मुस्कुराहट में छिपाना चाहती हूँ
दर्द मैं तुझको हराना चाहती हूँ
पाँव धरती पर जमाना चाहती हूँ
चाँद भी अपना बनाना चाहती हूँ
इंद्रधनुषी कल्पना के रंग भरकर
सपनों को अपने सजाना चाहती हूँ
उग्रता ऐ दर्द तू अपनी दिखा ले
सब्र अपना आजमाना चाहती हूँ
मैं दिलों से नफरतों के शूल चुनकर
फूल उल्फत के खिलाना चाहती हूँ
मैं ग़ज़ल में दीप आशा के जलाकर
तम निराशा का भगाना चाहती हूँ
‘अर्चना’ मैं प्यार करती हूँ कलम से
भावना में डूब जाना चाहती हूँ
22-04-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद,(उ प्र)