मुस्कुराया कौन करता है
मेरे क्षणिक खुशियों को ,चुराया कौन करता है।
मेरे गम को देखकर , मुस्कुराया कौन करता है।
मैंने अपनो की फ़ेहरिस्त बड़ी जबरदस्त रख्खी थी,
फिर मुझे अपना बनाकर ,पराया कौन करता है।
मुस्कुराहट को लबों से गये वक्त हुआ।
मेरा गम से वास्ता बड़ा बेवक्त हुआ।
ये परेशानियों के समंदर से ,डराया कौन करता है।
मेरे गम को देखकर , मुस्कुराया कौन करता है।
आफ़ते, रुसवाईयाँ, और ऊपर से ये तन्हाइयां।
मेरा अकेले चलना और साथ में बस परछाइयां।
मुझसे अपना पीछा , छुड़ाया कौन करता है।
मेरे गम को देखकर , मुस्कुराया कौन करता है।
दोस्तों की क्या कहें ,फेहरिस्त छोटी हो
गयी है।
खुशियों के सामान की ,लिस्ट छोटी हो गयी है।
मुझसे इसकदर दुश्मनी ,निभाया कौन
करता है।
मेरे गम को देखकर , मुस्कुराया कौन करता है।
– सिद्धार्थ गोरखपुरी