मुस्कुराने का बहाना
मुस्कुराने का बहाना मिल गया !
दिलनशीं मंज़र सुहाना मिल गया !!
सच कहूँ तो मोज़िज़ा ही हो गया !
आरज़ू को आबोदाना मिल गया !!
ज़िंदगी से हम हुए बेज़ार थे !
इक हसीं हमको तराना मिल गया !!
मेरी भी हर शायरी निखरेगी अब !
मीत हमको शायराना मिल गया !!
दूर दिल के सब भरम होने लगे !
जब हमें रहबर सयाना मिल गया !!
अब मुसाफ़िर खुश हुआ ये सोचकर !
जीत का हमको ठिकाना मिल गया !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
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