मुस्कुराती है सदा दिलदार के लिए — इश्क़-ए-माही
ग़ज़ल — 02
**********
मुस्कुराती है सदा दिलदार के लिए
हर ख़ुशी कुर्बान उसकी प्यार के लिए
बनके बदली झूमती सावन में हर घड़ी
है बरसती बूँद बनके यार के लिए
फूल सी महके सदा काँटों के बीच में
गूँजती बन बाँसुरी झनकार के लिए
पहन जामा इश्क़ का वो ढूँढती तुझे
मिल गया तो रुक गई दीदार के लिए
ले हाथों में जब ‘माही’ ने कुछ कहा
झुक गयी उसकी नज़र इज़हार के लिए
©® डॉ प्रतिभा माही