मुस्कुराती चिट्ठियां
ग़ज़ल
…. मुस्कुराती चिट्ठियां
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दिल जिगर से भी प्यारी, हैं तुम्हारी चिट्टियां।
जान जाती लौट आती,पा तुम्हारी चिट्टियां।।
घेर लेती है कभी जब, गम- ए- तन्हाई हमें।
गुदगुदाती- खिलखिलाती, मुस्कुराती चिट्ठियां।।
एक वो तस्वीर तेरी, देख जीतें हैं जिसे ।
पूछतीं है रोज हमसे, कैसी लगती चिट्टियां।।
यादों की ताबीर इनमें, जीने की तासीर है।
रुसवा जब करता जमाना, तब रिझाती चिट्ठियां ।।
बच्चों सी मासूम दिखती, मां के लगती प्यार सी।
और सनम की बिंदिया जैसी, ये चमकती चिट्टियां।।
चिट्ठियों का ये चलन, “सागर” खत्म ना हो कभी।
लिख सके चिट्ठी ना जो, उनको चिढाती चिट्ठियां।।
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मूल रचनाकार ….
बेखौफ शायर… डॉ.नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश
9149087291