मुस्किल में संसार
**** मुश्किल में संसार ****
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औंधे मुँह गिरती सरकार है,
आदत जब होती बदकार है।
पैनी धारें दिखती ही नहीं,
बिन कार्य की अब तलवार है।
रौनक फ़ीकी फ़ीकी सी दिखे,
मुश्किल में सारा संसार है।
दब कर रह जाती आवाज़ हर,
शायद कोई ही दमदार है।
स्त्री ने छोड़ा है सलवार को,
खतरे में सारे ही संस्कार है।
मिलजुलकर रहते हों जन सभी,
फलता दिखता खुश परिवार है।
मनसीरत सूना – सूना जहां,
सच्चा कब कोई दिलदार है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)