मुस्कराहट
मुस्कराहट नारी की
बिखरी है
दुनियाँ पूरी मुस्करायी
कालजयी है
अमृत स्रोत मयी नारी
समायी है
नहीं किसी से कम वह
मनवायी है
यह बात उसने सबसे
नहीं मानी है
भैरवी बन कर वो तब
गुर्रायी है
बन कर आशा दुनियाँ
में आयी है
लक्ष्मी का रूप रखकर
ले आयी है
रंगत सबके घर घर में
बनी सबकी
मान मर्यादा नारी में ही
प्रेरणामयी माँ
नारी में जहाँ विजयी है
पराजय भी रोती
गंगा यमुना पावन धारा
सरस्वती का संगम
माँ के चरणों में रहता
पतित पावन
अहिल्या वहाँ करती है
इन्तजार है
नभ की सारी उँचाईयों
को नाप गहन
उदधि पताका फहराई
मत पुरुष समझो
भोग विलास
अतुलनीया
वस्तु इस नारी को
कुठिंत
मानसिकता का शिकार
पुरूष
न समझे उसको
आनंद
दायिनी मात्र उपभोग की
वस्तु केवल
दूर नहीं दिन जब वो
साम्राज्य
नारी अपना फैलाएगी
डॉ मधु त्रिवेदी