मुस्की दे, प्रेमानुकरण कर लेता हूँ
बैरी से भी ज्ञान ग्रहण कर लेता हूँ ।
अमल भाव में चार चरण कर लेता हूँ।
दुख में भी है बोध, सजग ‘नायक’ बनकर।
मुस्की दे, प्रेमानुकरण कर लेता हूँ।
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मुस्की=मुस्कराहट
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● उक्त मुक्तक को मेरी कृति “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाए” कृति/काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
●”पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” कृति का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
●प्रकाशित मुक्तक श्रेष्ठ काव्य प्रभा खंड 1
उक्त कृति में वर्ष 2011में मेरी 04 रचनाएं प्रकाशित हुईं थी
पं बृजेश कुमार नायक