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4 Oct 2020 · 1 min read

मुसाफ़िर

अकेले ही चलना होता है इंसान को
पूरा करने को एक निश्चित सफ़र
तमस से निकलकर उजाले की ओर
वक़्त से बंधी पहेलीनुमा ज़िंदगी में…….
मुसाफ़िर ही तो है वह
छोड़कर जाना है उसे यहां
हर बीते लम्हे को बनाकर याद
अपनों के लिए उनकी ज़िंदगी में……….
गुजरते वक़्त के साथ
काया , माया और साया
कुछ भी स्थायी नहीं है
जाने क्यों जानकर भी यह हर इंसान
परेशाँ ही रहता है अपनी ज़िंदगी में……..

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 256 Views

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