मुसाफिर
तुम इश्क़ की राह का गर मुसाफिर बनो,
हाथ तुम्हारा थाम कर हमसफर बनूंगा मैं।
कांटे बहुत मिलेंगे जब इस राह में तुम्हें,
चादर गुलाब की राह में बिछा दूंगा मैं।।
चलते चलते थक कर बैठोगी तुम जहाँ,
वो जगह खुशबू सी महक जाएगी।
उजड़ा चमन खिल उठेगा फिर एक बार
चहरे पर जब तुम्हारे मुस्कान आएगी।।
अब जरा संभल कर कदम बढ़ाना तुम,
आगे चढ़ाई है और रास्ता भी है पथरीला।
हाथ मेरा तुम कस कर थामना बस,
मंजिल की आस में सफर होगा सुरीला।।
हरियाली जब धीरे से पास आने लगे, पक्षियों का कलरव भी सुनाई देने लगे।
समझ लेना मंजिल कहीं आस पास है,
और दूर कहीं वो खड़ा दिखाई देने लगे।।
अलविदा मुझको कह कर आगे बढ़ जाना,
मुझको अब यहां से वापस है मुड़ जाना।
तन्हाई ही है अब और हैं तुम्हारी यादें,
इन्हीं के सहारे अब बचा समय है बिताना।।