मुसाफिर
हर एक व्यक्ति मुसाफिर यहाँ
मंजिल मिलेगी उसे फिर कहाँ
भटका हुआ चला जा रहा
बनेगा कोन उसका पाथेय यहाँ
पत्थर राह में पड़ें अब मिलेगें
मार्ग बाधाओं का हल करेंगे
बुद्धि विवेक का हो समन्वय
शूल ये फूलों में तब ही बदलेंगे
हर सोच रास्ते को करे सुगम
काम सारे सिद्ध होगें दुर्गम
उस प्रभु में रख तू विश्वास
पा लेगा अगम को बढ़ा कदम
बढ़ता जा मंजिल तुझे मिलेगी
हर निराश आस में बदलेगी
बादल दुख के तो छँटने ही है
एक दिन मंजिल तो दिखेंगी
~~डॉ मधु त्रिवेदी ~~