मुसाफिर हूं मोहब्ब्त का — ( मुक्तक)
मुसाफिर हूं मोहब्बत का, सफर में यारों निकला हूं।
यही दौलत मेरी प्यारो ,लुटाने इसको निकला हूं।
चाहते हो यदि इसको, साथ में मेरे आजाओ।
न मुकरू गां मेरा वादा , बांटने सबको निकला हूं।।
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नहीं कोई मोल मै लूंगा,बिना ही तोल के दूंगा।
बांटता ही चलूंगा मै और साथ आपका भी लूंगा।
अगर मंजूर हो तुमको ,भरोसा दो तुम यह मुझको।
मोहब्बत के इस तोहफे से, खुशियां सब में भर दूंगा।।
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राजेश व्यास अनुनय
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