मुसाफिर हूँ यारों
******** मुसाफिर हूँ यारों *******
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मुसाफिर हूँ मैं यारों, चलता जा रहा हूँ,
मुसीबतों से हर रोज लड़ता जा रहा हूँ।
पल पल जिन्दगी से खफ़ा हो के देखा,
वफ़ा से जफ़ा मैं कमाता जा रहा हूँ।
अपनों की शैतानी से तंग इस कदर,
गम की खाई में फंसता जा रहा हूँ।
आँसुओं की झड़ी ने आँचल भिगोया,
पतझड़ में पत्तों से झड़ता जा रहा हूँ।
खोटे सिक्के सा चलता नहीं कहीं पर,
कीमतों में हर पल घटता जा रहा हूँ।
मनसीरत को कोई समझना न चाहे,
रोज रोज मर कर मिटता जा रहा हूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)