मुशायरे में’शे’र अर्ज करो
एक लौ अगर बूझ रहीं हैं तो जलानी क्यो है
उजाला है चारों और तो लौ दिखानी क्यो है
शौक से लटकाते है निंबू मिर्च बाजारों में जिस भूमि के
वहां महल अच्छा लगेगा उजाड़ दो फसल बचानी क्यो है
हाथों में लेकर घूमता हूं अब उन पोधों को कहीं जमीं मिले
सिर्फ़ और सिर्फ़ कटे मिले ये जमीं निशानी क्यों है
सब ढोंग है सबको अपनी फिक्र है मानते है
जता ना अब की फ़िक्र है आख़िर ये मेहरबानी क्यों है
पागल कहता कहता मर गया बंजर भूमि नहीं इंसान हैं
मौत पर उसकी जंगल रोया था ये बात समझानी क्यो हैं
पेड़ ने खुदखुशी कर ली पेड़ पर लटक कर
मेरी साँसे लेकर मुझे ही काटते ऐसी कुर्बानी क्यो हैं
‘राव’ सबको पता है ये बाते बतानी क्यो है
मुशायरे में ‘शे’र अर्ज करो व्यर्थ कहानी क्यो है।