Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Feb 2019 · 1 min read

मुशायरे में’शे’र अर्ज करो

एक लौ अगर बूझ रहीं हैं तो जलानी क्यो है
उजाला है चारों और तो लौ दिखानी क्यो है

शौक से लटकाते है निंबू मिर्च बाजारों में जिस भूमि के
वहां महल अच्छा लगेगा उजाड़ दो फसल बचानी क्यो है

हाथों में लेकर घूमता हूं अब उन पोधों को कहीं जमीं मिले
सिर्फ़ और सिर्फ़ कटे मिले ये जमीं निशानी क्यों है

सब ढोंग है सबको अपनी फिक्र है मानते है
जता ना अब की फ़िक्र है आख़िर ये मेहरबानी क्यों है

पागल ‌कहता कहता मर गया बंजर भूमि नहीं इंसान हैं
मौत पर उसकी जंगल रोया था ये बात समझानी क्यो हैं

पेड़ ने खुदखुशी‌ कर ली‌ पेड़ ‌पर लटक कर
मेरी‌ साँसे लेकर‌ मुझे ही‌ काटते ऐसी कुर्बानी क्यो हैं

‘राव’ सबको‌ पता है ये बाते बतानी‌ क्यो है
मुशायरे में ‘शे’र अर्ज करो व्यर्थ कहानी क्यो है।

3 Likes · 2 Comments · 364 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
विभेद दें।
विभेद दें।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
वक्त के थपेड़ो ने जीना सीखा दिया
वक्त के थपेड़ो ने जीना सीखा दिया
Pramila sultan
ये मन रंगीन से बिल्कुल सफेद हो गया।
ये मन रंगीन से बिल्कुल सफेद हो गया।
Dr. ADITYA BHARTI
"कर दो मुक्त"
Dr. Kishan tandon kranti
पंचायती राज दिवस
पंचायती राज दिवस
Bodhisatva kastooriya
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
***दिव्यांग नही दिव्य***
***दिव्यांग नही दिव्य***
Kavita Chouhan
सजाता हूँ मिटाता हूँ टशन सपने सदा देखूँ
सजाता हूँ मिटाता हूँ टशन सपने सदा देखूँ
आर.एस. 'प्रीतम'
कसूर किसका
कसूर किसका
Swami Ganganiya
ज़िन्दगी में अच्छे लोगों की तलाश मत करो,
ज़िन्दगी में अच्छे लोगों की तलाश मत करो,
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
लम्बी हो या छोटी,
लम्बी हो या छोटी,
*प्रणय*
रिश्ते कैजुअल इसलिए हो गए है
रिश्ते कैजुअल इसलिए हो गए है
पूर्वार्थ
मां को नहीं देखा
मां को नहीं देखा
Suryakant Dwivedi
सत्य राम कहॉं से लाऊँ?
सत्य राम कहॉं से लाऊँ?
Pratibha Pandey
पाठ कविता रुबाई kaweeshwar
पाठ कविता रुबाई kaweeshwar
jayanth kaweeshwar
बदल चुका क्या समय का लय?
बदल चुका क्या समय का लय?
Buddha Prakash
मेरी जिंदगी भी तुम हो,मेरी बंदगी भी तुम हो
मेरी जिंदगी भी तुम हो,मेरी बंदगी भी तुम हो
कृष्णकांत गुर्जर
*बताओं जरा (मुक्तक)*
*बताओं जरा (मुक्तक)*
Rituraj shivem verma
गिरगिट बदले रंग जब ,
गिरगिट बदले रंग जब ,
sushil sarna
विदेशी आक्रांता बनाम मूल निवासी विमर्श होना चाहिए था एक वामप
विदेशी आक्रांता बनाम मूल निवासी विमर्श होना चाहिए था एक वामप
गुमनाम 'बाबा'
रूठ जाना
रूठ जाना
surenderpal vaidya
कुछ तो बाकी है !
कुछ तो बाकी है !
Akash Yadav
" हय गए बचुआ फेल "-हास्य रचना
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
4317.💐 *पूर्णिका* 💐
4317.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
"बैठे हैं महफ़िल में इसी आस में वो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
क्या देखा
क्या देखा
Ajay Mishra
तुम बिन जाएं कहां
तुम बिन जाएं कहां
Surinder blackpen
बिटिया नही बेटों से कम,
बिटिया नही बेटों से कम,
Yogendra Chaturwedi
प्रेम पगडंडी कंटीली फिर भी जीवन कलरव है।
प्रेम पगडंडी कंटीली फिर भी जीवन कलरव है।
Neelam Sharma
अफ़सोस
अफ़सोस
Dipak Kumar "Girja"
Loading...