मुल्क
हर शख़्स यहाँ रोता हुआ मिल जाएगा,
दामन अपना भिगोता हुआ मिल जाएगा..
चंद नोटों के लिए हो गयी ज़िन्दगी बर्बाद,
हर शख्श ये कहते हुए मिल जाएगा..
भूख की शिद्दत से निकल रही है जान ,
हर रोज़ यहाँ किसानों की, कामगारों की..
मुल्क का हर ज़िम्मेदार शख़्स यहाँ,
तुम्हें जश्न मनाते हुए मिल जाएगा..
डूब रहा है मेरा मुल्क ,तारीकियों में गुर्बत के;
हर शख्श हक़ ए राह में, सोता हुआ मिल जाएगा..
हर मोड़ ,हर चौराहे पर ,कचरे में ढूंढता हुआ खाना..
कोई बच्चा, कोई बूढ़ा तुम्हे मिल जाएगा..
लोग बेहिस से हुए जाते हैं ,रौ ए ज़िन्दगी में खुद के..
हर शख्स तुमको तड़पता हुआ, घुटता हुआ मिल जाएगा..