मुल्क
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
बरसों पुराना तिलिस्म आख़िर टूट गया।।
एक मुल्क की नपुंसक सरकार का
दिखावटी पौरुष भृम आखिर बिखर गया।।
अमरीका के डंडो की बैसाखी काम न आई
मुशकिल घड़ी में वो भी पल्लू झाड़ गया ।।
निगह बानों ने कर ही डाली मनमानी अपनी
एक एक कर पूरा मुल्क निस्तान जीत लिया ।।
सेना में छुप छुप सब शामिल होने लगे
वर्चस्व सुरक्षा का तो खोखला हो ही गया ।।
खाकर सरकारी माल ट्रेनिंग पाई थी
वैसे तो सब मुल्क बानी थे लेकिन राष्ट्रीयता
की शपथ दोहरा कर दोहन नीति बनाई थी
उस नीति से, उस नीति से सीख कर
अमर अभेद किला भी आखिर जीत लिया ।।
बरसों पुराना तिलिस्म आख़िर टूट गया।।
एक मुल्क की नपुंसक सरकार का
दिखावटी पौरुष भृम आखिर बिखर गया।।
अमरीका के डंडो की बैसाखी काम न आई
मुशकिल घड़ी में वो भी पल्लू झाड़ गया ।।
देख रहा है विश्व अभी मुर्गे सा मुँह उचकाए
रेगीस्तानी ऊँट की करवट आखिर किस बल जाए ।।
ऐसी उहा पोह मची वहाँ पर के सामान्य नागरिक का
स्वर्णिम युग का सपना ही टूट गया ।।
भागम भाग मची है भगदड़ बचकानी सी
सब तरफ है मनमानी सी ।।
कोई भागे विमान के पीछे कोई छत पर जा बैठा
कोई कोई तो फ्यूल टैंक पे जा लटका
उड़ने लगा विमान तो सभी का जी घबराएँ
एक एक कर लगे टपकने पके बेर की …नाएँ ।।
साँसों ने सांसारिक बंधन तोड़ दिया
साँसों ने सांसारिक बन्धन तोड़ दिया
जो सपना था उड़ जाने का सो चकनाचूर किया ।।
भारत के सिरमौर रहे दाड़ी खुजलाते
किसी प्रकार एक एक कर
भारतीय लोगो को हैं बापिस लाते ।।
पैसा कमाने का भृम आखिर भ्रमित हुआ
जान बचे कैसे ये चिंतन सघन हुआ ।।
बरसों पुराना तिलिस्म आख़िर टूट गया।।
एक मुल्क की नपुंसक सरकार का
दिखावटी पौरुष भृम आखिर बिखर गया।।
अमरीका के डंडो की बैसाखी काम न आई
मुशकिल घड़ी में वो भी पल्लू झाड़ गया ।।