मुल्क के शत्रु
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कहीं अपने संगों के दंश हैं,
तो कही प्रजातंत्र में सियासत के वंश हैं।
मुल्क के शत्रु कहीं मुल्ला,कहीं महंत हैं,
दोनो परिवर्तन के दुश्मन अतीत के अंश हैं।
भ्रष्टाचार और कालाधन देश के व्यवस्था के ही अनिवार्य अंग हैं।
????—लक्ष्मी सिंह?☺