मुलाकात
वो पहली मुलाकात तुमसे,
जैसे कोई सपना पूरा हो गया हो मेरा…
कब से जाने कब से इंतज़ार था मुझे तुमसे
मुलाकात का,
मन तो किया गोद में रख कर सिर तुम्हारे,
रो दूँ, कह दूँ दिल के सब दर्द सारे…
पर तुमको नहीं करना चाहता था उदास,
रोक लिया खुद को तुम्हारे सामने बिखरने से,
क्योंकि तुमको उदास नहीं देख सकता मैं..
जब से पहचान हुई तुमसे, एक अपनेपन
का एहसास दिया तुमने,
जब भी पाता हूँ अकेला खुद को, साथ मिलता है
तुम्हारा….
अपनी हर जो कह न पाया कभी किसी से, वो तुमसे
ही कह पाता हूँ,
माना कि दूर रहती हो बहुत मुझसे, पर मेरे दिल के बेहद करीब हो तुम…
इतना जानता हूं कि कभी भी दुनिया की इस भीड़ में मुझे अकेला नहीं पड़ने दोगी तुम…
बस यूँ मेरा हाथ थाम, मेरा साथ देती रहना तुम…
ये जो खूबसूरत सा शब्द है “सखी” तुमने ही तो दिया था मुझे, बस हमेशा मेरी प्यारी “सखी” रहना तुम..!
सौरभ शर्मा