मुलाकात
तारों भरी रात थी
रात हसीं खास थी
प्रेमिका से ख्वाब में
हो रही मुलाकात थी
घनी नींद में लीन था
वक्त बहुत हसीन था
आगमन के चाव में
सर ना पर जमीन था
होश न ही हवाश थी
उन्हीं की तलाश थी
दुधिया सी चाँदनी में
खड़ी वो मेरे पास थी
मंद -मंद सर्द हवा थी
आखों में खूब हया थी
कांपते सुर्ख ओष्ठों से
आ रही शर्म हया थी
कहना वो चाह रही थी
कह न कुछ पा रही थी
स्पर्श के आभास से ही
संभल न वो पा रही थी
स्थिति बड़ी अजीब थी
तनिक भी न उम्मीद थी
बढती हुई धडकनें की
रूकने के न उम्मीद थी
बेहतरीन पल थम गए
पैर वहीं पर थे जम गए
प्रेम-भाव तेज बहाव में
वहीं पर हम थे रम गए
तभी कुछ यूँ घट गया
मेरा बिस्तर पट दिया
शवाब के ख्वाब से ही
हकीकत में पटक दिया
सुखविंद्र सिंह मनसीरत