मुलाकात ख़ुद के साथ।
आप ही सोच के देखिए हुज़ूर,
क्या ये भी कोई बात हुई,
मिलते रहे हैं सभी से अब तक,
पर ख़ुद से ना मुलाकात हुई,
जाने कितने दिन बीते,
जाने कितनी शाम हुई,
हिसाब लगाइए हर शाम का,
कि कितनी अपने नाम हुई,
जो हो सकता था बस अपने लिए,
वो वक्त भी औरों का हो गया,
मनाते-बुलाते दूसरों को,
ख़ुद से ही रिश्ता खो गया,
दूसरों में ख़ुशियां ढूंढते हुए,
बीत गई जाने कितनी रातें,
बाकी सब कुछ याद रहा,
बस भूल गए करना ख़ुद से बातें,
हंसिए-मुस्कुराइए सभी के साथ,
ना मुंह किसी से मोड़िए,
हर रिश्ता शिद्दत से निभाइए “अंबर”,
पर ख़ुद से नाता ना तोड़िए।
कवि-अंबर श्रीवास्तव