मुलाकातें
वो राज़ की बातें भी ज़रा सी थी,
तेरी मेरी मुलाकातें भी ज़रा सी थी!!
चांद भी अब क्या कहे तकल्लुफ में,
इन लफ़्ज़ों में सियासत भी ज़रा सी थी!!
चांदनी के तसव्वुर में चांद भी शरमा गया,
उसके दिल में वो मुहब्बत भी ज़रा सी थी!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”