मुर्दों के जज़्बात
मुर्दों के जज़्बात नहीं होते,
उनके अपने तो होते हैं मगर पास नहीं होते,
दिख जाते कहीं / कभी अपने,
तो आज हम यहां श्मशान में नहीं होते…..
सुकून में हो इस जालिम दुनिया से दूर,
देखता हूं तो यहां से, कोई किसी का नहीं,
बस सब अपनी जरूरतों के लिए जुड़े हैं,
वरना , यहां राख करने वाले भी न जुड़ते,
आज वह दौर कहां,
कभी भाई-भाई के लिए मरता था ,
आज भाई भाई को मारता है…..
उमेंद्र कुमार