मुर्दे के मन की पीड़ा
आज मुर्दे भी बोल रहे हैं
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आज मुर्दे भी मुख खोल रहे हैं,
अपने मन की पीड़ा खोल रहे हैं।
हुआ है उनके साथ बहुत अन्याय,
सबकी वे अब पोल खोल रहे हैं।।
मिली नहीं अस्तपतालो में जगह,
आक्सीजन के लिए भटक रहे थे।
हो रही थी दवाओं की काला बाजारी,
दवाओ के लिए हम तड़फ रहे थे।।
मिला नहीं चार कंधो का सहारा,
एम्बुलेंस की राह हम देख रहे थे।
श्मशान में भी जगह न मिली थी,
संस्कार के लिए जगह देख रहे थे।।
मिले थे हमको कफ़न चोर भी,
वो हमारा कफ़न भी लूट रहें थे।
बेचारे घर वाले भी क्या करते,
वे सबके वहां हाथ जोड़ रहे थे।।
मिली नहीं लकड़ी भी हमको,
गंगा में ही हमें वही बहा रहे थे।
कहते किससे ये सब बातें हम,
अपने आपको हम कोस रहे थे।।
नंगे खुले थे सब अंग वहां हमारे,
पशु पक्षी हमको सब नोच रहे थे।
ऐसी कभी नहीं देखी थी दुर्दशा,
अपने आप में ही हम रो रहे थे।।
हुआ ये सब कोरोना के कारण,
किसी को हम दोष नहीं दे रहे हैं।
कभी न हो ऐसी दुर्दशा किसी की,
ये कटु सत्य हम सबको बता रहे हैं।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम