‘मुर्गे की गलती’ ???
‘मुर्गे की गलती’
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मुर्गे की, बस यही गलती;
है ये एक, सीधा सा पक्षी;
भरता नहीं , ऊंची उड़ान;
और मुर्गा है,इसका नाम।
सीखो, अब तू भी मुर्गे से;
ज्यादा रेंगों मत,जमीन पे;
बनो तुम अब, सदा चतुर;
ऊंचा उड़ना सीखो,जरूर।
स्वार्थ की, प्यार को जानो;
आस पड़ोस को, पहचानो;
हर एक को , जगाओ मत;
मुर्गे की भूल,दुहराओ मत।
सुंदरता के पीछे,मत भागो;
बस तू, अब खुद ही जागो;
खुद की रक्षा,करना सीखो;
शत्रु से तुम , लड़ना सीखो।
मुर्गा बनना,छोड़ो जीवन में;
बनो तुम अब,सदा ही बाज;
वरना यह जग,मार खाएगा;
हर कोई है, यहां चालबाज।
‘ऊपरवाला’ है, ‘जीवनदाता’;
वही तो , शेर व बाज बनाता;
सब ही , सर्वभक्षी कहलाता;
तो फिर कोई,क्यों पछताता।
पक्षी तो , जग में हजार आए।
पर मुर्गा ही,सबको क्यों भाए।
जो जीवन भर,बनता है मुर्गा;
वह ही मार ज्यादा,मुर्गा खाए।
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स्वरचित सह मौलिक;
…. ✍️पंकज ‘कर्ण’
……… ….कटिहार।।
तिथि;०१/०१/२०२२