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11 Sep 2021 · 1 min read

मुर्गा (बाल कविता)

मुर्गा 【बाल कविता】
■■■■■■■■■■■■■
होटल में जाकर चुनमुन ने
मुर्गा जमकर खाया,
और रात को जब सोया तो
यह परिवर्तन पाया।

होठों के बदले लम्बी-सी
चोंच निकलकर आई,
सिर के बालों ने कलगी
बदसूरत एक बनाई।

इतने पर भी कहाँ रुका
मुर्गे के सब गुण आना,
शुरु गुटर-गूँ किया
रात भर चुनमुन जी ने गाना |

सुबह हुई तो चुनमुन ने
सब्जी – रोटी बनवाई,
बोला” कभी न मुर्गा भैया
तुमको खाऊँ भाई”।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

3 Likes · 1 Comment · 331 Views
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