मुर्गा (बाल कविता)
मुर्गा 【बाल कविता】
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होटल में जाकर चुनमुन ने
मुर्गा जमकर खाया,
और रात को जब सोया तो
यह परिवर्तन पाया।
होठों के बदले लम्बी-सी
चोंच निकलकर आई,
सिर के बालों ने कलगी
बदसूरत एक बनाई।
इतने पर भी कहाँ रुका
मुर्गे के सब गुण आना,
शुरु गुटर-गूँ किया
रात भर चुनमुन जी ने गाना |
सुबह हुई तो चुनमुन ने
सब्जी – रोटी बनवाई,
बोला” कभी न मुर्गा भैया
तुमको खाऊँ भाई”।
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451