मुर्ख प्रलय कोप होते है l
मुर्ख प्रलय कोप होते है l
बुद्धिमान डरकोप होते है ll
यह दुनिया,
वहसी दरिंदों का डेरा है l
यहाँ उजाला कम,
बस अंधेरा ही अंधेरा है l
जब खुद बने देश के दुश्मन l
पनप पनप विशाल होगा दुश्मन l
तुम इतिहास हो भूले,
पर याद रखे हुए है, दुश्मन l
गर हर एक नेता, व्यापारी, बुद्धीजिवी,
सच्चा शासक, सलाहकार, सेवक हो जायें
हर नागरीक,
सतर्क, सच्चा सैनिक, सज्जन, सेवक हो जाये l
हर देश वासी एक और नेक हो जाये l
तो आंतरिक, बाहरी, भारी से भारी दुश्मन का
साहस शून्य हो जाये l
भले दुश्मन अनेक हो जाये l
नहीं तो,
जीना दुस्वार हो जाये l
दासत्व का संसार हो जाये l
मृत्यु का भयानक वार हो जाये l
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न