*** मूर्ख कौन ? **
3.5.17 ***** रात्रि 11.7
देश के सैनिकों को समर्पित मेरी प्रथम रचना आपको सादर समर्पित
मूर्ख कौन ?
जो मौन की कारा में है बन्द
या बोलता है बोल बोलने को
हांकता है राजनीति छल-छद्म
डोलता बहुत है राजमद- पद
खोलता जुबां है सैन्यहाथ बन्द
सर कटे है आज रखते जो
माँ भारती-ऊंचा सर हरदम
मूर्ख कौन ?
जो देश -हित मितवित्त हो
चित्त से मात- हित शहीद
सेना- सरताज लाज-भारती
सर करता है अपना कलम
मूर्ख कौन ?
राज करते हैं राजनेता अब
पर- पीर कौन की सुने वो
क्यों डरता है वो लेने से
प्रतिकार अपने सैन्यजन का
मूर्ख कौन ?
चलती है खुजली यूं उनकी जुबां पे
क्यों चलती नही खुजली हाथ-हथेली
पहने हो कंगन ज्यो हो नार -नवेली
करती हो जैसे साज – सिंगर हवेली
मूर्ख कौन ?
जन मरता नही सर कटता है उसका
धड़ है अब किसका सर मिलता नही
माँ खोती है बेटा ना रोती है चेता
सर दस नही सर-बदले एक लाओ
मूर्ख कौन ?
रोती विधवा बेचारी देखो कैसी लाचारी
सब कुछ खोया खोई जीवन-पूंजी सारी
कौन खेरख़बर लेगा दो दिन बाद बेचारी
दो दिन- रोना बिसार देगी दुनियां सारी
मूर्ख कौन ?
गाल बजावण वाला कित मरगया साळा
इक बेर खोल दे जो हाथ हमारा फिर
फिर जग देख लेगा सारा म्हारा नजारा
बेरियों नूं सिर-बिन कर देगा हम सारा
मूर्ख कौन ?
फिर सोच लो तुम अपनी लाचारी
नही अब जनमन को इतनी गवारी
अब इतना ना सोवो जो है खोवो
अब कैसी लाचारी तुमको बेचारी।।
मूर्ख कौन ?
उठो वीर जवानों है हाथ खड्ग तुम्हारी
आज अस्मत बचानी ख़ुद अपनी तुम्हारी
है खोलता लहू अब है बोलता लहू अब
अब कैसी लाचारी कैसी सोच-विचारी ।।
मूर्ख कौन ?
?मधुप बैरागी