मुरलीधर
मुरलीधर तुम भी तो रोये थे
आदरणीय माता – पिता का कष्ट देख कर
प्यारी माँ यशोदा से लिपट कर
अपनी राध से बिछड़ कर
मित्र सुदामा की दरिद्रता पर
बुआ कुंती की सहनशीलता पर
प्रिय पांडवों पे अन्याय पर
कर्ण की किस्मत पर
अभिमन्यु की वीरगती पर
वीर घटोत्कच के बलिदान पर
गुरु द्रौण की मृत्यु पर
पूज्य पितामह की इक्षामृत्यु पर
भयावह महाभारत में लाशों के ठेर पर
सतयुग में तो तुम्हारा रोना
आसान था अँगुलियों पर गिनना
आस है कलियुग में भी आओगे
विनती है तुमसे मुरलीधर
मेरी मानना मत आना
कब – कब किन – किन पर रोओगे
यहाँ की दशा देख कर
रोते – रोते थक जाओगे ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17/04/14 )