मुमकिन है !
मुमकिन है, की तेरे बाहों में लिपट, बयां दर्द करूं ।
मुमकिन है, की तेरे सांसों की गर्माहट में, महसूस – ए – इश्क़ करूं ।
मुमकिन है, की नैनों में तेरे, मेरी तस्वीर दिखे ।
मुमकिन है, की अश्कों में तेरे बिगड़ी तकदीर दिखे ।
मुमकिन है, के तेरे दिल में, मेरे धड़कन की जुस्तजू रहे ।
मुमकिन है, के ज़ुल्फों में तेरे, मेरी मौजूदगी के खुशबू रहे ।
मुमकिन है, के तेरे हर कदमों में साया दिखे मेरी ।
मुमकिन है, के तेरे हर सपनों में मोहब्बत दिखे मेरी ।
– निखिल मिश्रा