मुद्दतों से तुम्हारा दीदार न मिला
मुद्दतों से तुम्हारा दीदार न मिला
क़ल्ब-ए-तपाँ को क़रार न मिला
इक-इक कर बिक गयीं खुशियाँ सारी
ग़मों का कोई ख़रीदार न मिला
कब से आज़ुर्दा हूँ फ़रेब-ए-वफ़ा से
तिरे बाद कोई शख़्स वफ़ादार न मिला
मिरे हिस्से में मादाम ख़िज़ा आई
हमें कभी मौसम-ए-बहार न मिला
जिसमें तिरा ज़िक्र न किया हो हमने
मिरी ग़ज़लों में ऐसा अश’आर न मिला
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)