मुझ पर करो मेहरबानी
मुझ पर करो मेहरबानी तुम
मेरी ओर न हेरो
मेरी पीठ, पीठ रहने दो
अपना हाथ न फेरो
तुम जिसका सिर सहलाते हो
शुभाशीष देते हो
प्रायः पागल हो जाता वह
तुम मति हर लेते हो
झड़ जाते हैं केश शीश के
हो जाता वह गंजा
जिससे हाथ मिलाते उसका
कट जाता है पंजा
नयन बाण संधान तुम्हारा
व्यर्थ नहीं जाता है
जो नैनों से नैन मिलाता
वह मुंह की खाता है
मैं हूं सजग, जानता तुमको
खतरा मोल न लेता
तुम से बचकर भववारिधि में
जीवन नौका खेता
तुम हो कुशल शिकारी, बहुधा
लुक-छिप जाल बिछाते
मेरे जैसे जाने कितने
चंगुल में फंस जाते
धन्य तुम्हारा जीवन दर्शन
जिसके तुम अभ्यासी
तुम ही बनते हर चुनाव में
सर्वोपरि प्रत्याशी
तुम से ही समाज में गति है
तुम से ही सक्रियता
तुम बिन भला कहां सम्भव है
सामाजिक समरसता!
महेश चन्द्र त्रिपाठी