मुझ को किसी एक विषय में मत बांधिए
मुझ को किसी एक विषय में मत बांधिए
हुं मैं एक कवि बस इतना सा ही जानिए
मैं लिखुंगा किसी के अन्तर्मन की वेदना
मैं लिखुंगा किसी के मौन की चेतना
मुझ को क्यों तुम किसी एक विषय में हो बांधते
मुझ को क्यों तुम किसी एक पथ का ही पथिक हो मानते
मैं नदी सा भी हूं ओर मुझे में कहीं एक है झरना भी
मैं कहीं हूं तीव्र धारा ओर कहीं हूं डेल्टा भी
मुझ में ना जाने क्यों तुम ढूंढते हो जाने क्या
मैं जो हूं वो ही मुझ को क्यों नहीं तुम मानते
उम्मीदों का एक पुलिंदा मुझ से हो क्यों बांधते