मुझे सारा संसार हिन्दुस्तान लगता है
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कुछ यूँ चले अम्नोवफ़ा की ताज़ा हवा शामोसहर।
फ़स्ले बहाराँँ चारसू, जश्ने चराग़ााँँ शामोसहर।
तालीमगाह-इल्मरसाँँ है तेरा शहर-मेरा शहर,
तारीख़ बयाँँ करे सुखनवर, तुम भी बयाँँ शामोसहर।
अम्नोवफ़ा- प्रेम और शांति, शामोसहर- दिन-रात, फ़स्ले बहाराँँ- बसन्त ऋतु, जश्ने चराग़ा़ाँँ- दीपोत्सव
, तालीमगाह- पाठशाला, इल्मरसाँँ- पढ़ा-लिखा, तारीख़- इतिहा, सुखनवर- कवि
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मुझको हर ग़ज़ल मज्मूआ दीवान लगता है।
किताब का हर सफ़्हा गीता क़ु़ुरान लगता है।
कहते हैं हर मुल्क में बसे हैं हिन्दुस्तानी,
मुझको सारा संसार हिन्दुस्तान लगता है।
मज़्मूआ- संग्रह, दीवान- व्याकरणिक और नियमों की दृष्टि से सम्पूर्ण ग़़ज़लों की क़िताब
सफ़्हा- पन्ना, मुल्क- देश.