मुझे सलीका है।
मुझे सलीका है..!!
तहज़ीबे गम समझनें का
इसलिए जब रोती हूं
तो भिंगी नहीं रहती आंखें मेरी।
मैंने रोशनी नहीं देखा कभी
” चांदनी रातों की”
मुझे सलीका है..!!
अंधेरों में भी मुस्कुराने की।
कांधे मेरे दबे रहते है
दुनियावी बोझ तले
अंबर सा फैला रहता है
परवाह अपनों की,
अरमान नहीं किसी कंधो पर
सिर रख कर सोने का
मुझे सलीका है…!!
खुद में गुमशुदा होने का।